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फ़ूल को शूल कहना,उसकी कोई तो लाचारी है
गहराई को न थाह पाना,जमाने की बीमारी है

शिकवा न शिकायत कोई,वादों का लेकर सहारा
शूली पर चढ़ जाना, इश्क़ की ख़ुद्दारी है

सब कुछ निसारे-राहे वफ़ा कर चुके हम
अब निगाहें कर्ज़, चुकाने की,यार की बारी है

जाने किस लिए उम्मीदवार बैठा हूँ मैं यहाँ
वहाँ जाने की तो कोई नहीं सवारी है

जब नजात मिली ग़म से, मिट गई कद्रें
जिंदगी की तब से, दुनिया की,क्या वफ़ादारी है

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