Skip to main content
Author

याद आती है !!!
बांस की खाट पर बैठी हुई,
टेढ़े सींगो वाली पागुर करती काली बकरी ।।
याद आती है !!!

कच्ची दीवार की ओट से ।
चाँद के चेहरे पर बादल सी मैली ओढ़नी,
पुरानी चाँदी के मैले कंगन की ।।
याद आती है !!!

चमचमाते हुये पीतल के बर्तनो की ।
रामदास और दीन मोहम्मद के आँगन की,
दही, राब और लेमू की पत्ती से बने शरबत की ।।
याद आती है !!!


तुम किया सोच रहे हो ?
तुम तो पांच सितारा होटल मै हो !
मै किया जवाब दूँ ???

इन मै से कोई सितारा मेरे काम का नहीं ।
जो मेरे थे,
मेरी पलकों मे बसे हुए हैं ।।
कुछ मेरे गाँव की मिटटी मे रचे बसे हुएं हैं ।।।

Rate this poem
No votes yet
Reviews
No reviews yet.