सब भूल गया आज खिली ये बहार है
है गर्दिशे-नसीब चली जो बयार है
शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है
लिखी है हमने आज़ादी इबारत ख़ूँ के क़तरों से
मिटाने को उसे भी हम लगे हैं नाज़-नखरों से
बहुत दिल पर चले आरे दोबारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है
हमीं दुश्मन हैं अपनों के ख़ुदी पे वार करते हैं
लगाते घाव अपनों को नहीं वो प्यार करते हैं
मिटा डाला वो अपनापन बेचारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है
अभी भी कुछ न बिगड़ा है संभल जाओ मेरे भाई
नशा दौलत का छोड़ो अब चले आओ मेरे भाई
न खेलो खेल ख़ुदगर्ज़ी, सहारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है
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