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नवल धवल शीतल सुखद, मात्रिक छंद अनूप
सर्वोपरि दोहा लगे, अनुपम रूप-स्वरुप

लघु-गुरु में यह बंध रहा, तेइस अंग-प्रकार
चार चरण इसमें सजें, लघु इसका आकार

तेरह मात्रा से खिले, पहला एवं तृतीय
मात्रा ग्यारह मांगता, चरण चतुर्थ द्वितीय

विषम चरण वर्जित जगण, करता सबसे प्रीति
सम चरणों के अंत लघु, दोहे की ये रीति

दोहा रचना है सुगम, नहीं कठिन कुछ ख़ास
प्रभुवर की होगी कृपा, मिलकर करें प्रयास

दोहे पर दोहा रचें, रख लें दोहा मान
गागर में सागर भरें, बाँटें जग में ज्ञान

दोहा घातक शस्त्र है, गहरा करता वार
दुश्मन को वश में करे, उपजे उसमें प्यार

दोहा सच का मीत है, दोहा गुण की खान
दोहे की महिमा अगम, दोहा ब्रह्म समान

अभियंत्रण-साहित्य का, करा रहा संयोग
दोहा अमृत रस भरा, कर लो नित्य प्रयोग

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