Author Jagdish Gupt आँख-सी उजली धुली यह रात हिम शिखर पर रश्मियों के पाँव रख कर बढ़ चली कहा मैंने - रुको मैं भी साथ चलता हूँ गगन की उस शांत नीली झील के निस्तब्ध तट पर बैठ कर बातें करेंगे। Rate this poem Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 No votes yet Rate Reviews Post review No reviews yet. Log in or register to post comments