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जीवन जैसा भी था वर्तुल था
सीधी रेखा बीच से टूटा हुआ वर्तुल थी
टूटकर भी तनी हुई
टूटने से भी तन सकता है कोई का आकार में अनुवाद वह
जो चौरस था वह भी वर्तुल
उसके चार केंद्र थे जो अपनी जगह से इतने अनमने
कि ग्रामदेवताओं की तरह केंद्रीयता का बहिष्कार कर सीमाओं पर जा बसे
हर आकार में वर्तुल होने का आभास था
और यह भी कि जीवन का अर्थ आकार में नहीं, आभास में बसा होता है
एक पत्थर थी भाषा के भीतर स्त्रीलिंगी होने की हैरत से भरी
उसका स्त्रीत्व पहुंचा मुझ तक पहले फिर उसका पत्थर होना
स्त्रीलिंगी पत्थरों का उद्धार पवित्र हृदयों से नहीं पवित्र पैरों से होता है
इस हैरत से भरा मैं इस सोग में ख़ाली हुआ
कि मेरे पैरों में हमेशा मैल रही
इतना प्रेमा मैं तुमसे कि तुम्हें उद्धार की ठोकर भी न मार पाया
कि पवित्र हृदयों की अहमियत पवित्र पैरों के मुक़ाबले कम ही रही हमेशा
हर पत्थर की कामना यह कि पानी से हवा से किनारों की रेत से घिसे उनका अनाकार
हर आभास में पाए वह वर्तुल होने का आकार
जैसे बांस-वृक्ष की संधियां वर्तुल अंगूठियों से जड़ी हुई
बीसियों केंद्रों के अनमनेपन का अचंभा जो वर्तुल, तुम वह जीवन थीं
जोबन जिस जीवन का जोगनें ले गईं
ज्यों यह जीवन-संध्या नहीं
पूरा जीवन ही संध्या है

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