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उसने जब कहा मुझसे गीत एक सुना दो ना
सर्द है फिजा दिल की, आग तुम लगा दो ना

क्या हसीं तेवर थे, क्या लतीफ लहजा था
आरजू थी हसरत थी हुक्म था तकाजा था

गुनगुना के मस्ती में साज़ ले लिया मैं ने
छेड़ ही दिया आख़िर नगमा-ऐ-वफ़ा मैंने

यास का धुवां उठा हर नवा-ऐ-खस्ता से
आह की सदा निकली बरबत-ऐ-शिकस्ता से

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