Skip to main content
Author

सुना करो मेरी जाँ इन से उन से अफ़साने
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालों
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने

मेरी जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गये लोग
सुना है बंद किये जा रहे हैं बुत-ख़ाने

जहाँ से पिछले पहर कोई तश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

बहार आये तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सेहरा ने

सिवा है हुक़्म कि 'कैफ़ी' को संगसार करो
मसीहा बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने

Rate this poem
No votes yet
Reviews
No reviews yet.