Skip to main content
Author

गिरती हुई धारों को
तेज़ हवा के झोंके
फुहारों में बदल देते हैं,

दृश्य से परे
देर तक लहराती रहती हैं,
धारों को काटती हुई फुहारें
और फुहारों को काटती हुई धारें

आँख के आगे
हर तरफ़ छा जाता है,
पानी का रूप भी,
रूपांतर भी ।

भीग जाता है,
त्वचा का वन भी,
वनांतर भी ।

Rate this poem
No votes yet
Reviews
No reviews yet.