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रास्ते गर नाही मिले मंजिलों की चमक तो है,
फ़ासले बने तो क्या रिश्तों की कसक तो है,
जो प्यार दब ग्या कहीं, वो जुनून रूक ग्या कहीं,
रेत के महल ढहे, बस देखते हम रहे,
फ़र्ज़ की गर्म हवाओं मे दो दिलजले पिघल गये,
भीड़ मे फिसल गये वो हाथ फिर बिछड़ गये,
सपनो के फूल अगर नही खिले तो क्या हुआ,
साँसों मे महकती अरमानों की महक तो है,
फ़ासले बने तो क्या रिश्तों की कसक तो है..

परिजनो मे जो समर हुआ, बन रहा घरोंदा मिट ग्या,
तिनका तिनका अलग हुआ, आँधियों मे उजड़ ग्या,
समय का जो चकर्व्युह चला, जो फंसा ना बच सका,
शबद बेजुबान थे, हर पल शिला समान थे,
दिन मे भी कालिमा अगर रात मे भी रोशनी नही हुई तो क्या हुआ,
अकेलेपन को सेकटी लम्हों की तपस तो है,
फ़ासले बने तो क्या रिश्तों की कसक तो है..

प्रेम के बहाव के चश्मे चले झरने बहे,
पर्वतों की वादियों मे गूँजटे थे क़हक़हे, हर पल खुशी के बादलों की कश्तियों पर सवार था,
तितलियों संग फरार था मानो हर दिन त्योहार था,
क्या पता था कि वो तो सिर्फ पानी के थे बुलबुले,
बाँध पर आकर रूक जाएंगे जो चल पड़े थे सिलसिले,
बुने थे जो सपने अगर टूट गये तो क्या हुआ,
उन रंग बिरंगे तानो की लड़ियों मे लचक तो है,
फ़ासले बने तो क्या रिश्तों की कसक तो है...

पर कब तक विलाप मे मुह छिपाते
चले सिसकियों की लहरों को तूफान बनाते रहे,
थाम लो संभाल लो छूटती पतवार को,
गिरा दो मिटा दो भंवर की हर दीवार को,
दब रही अपनो की आवाजों को सुन लो,
बिखर गयी मसल गयी बहारों को चुन लो,
इस अमुलये जिंदगी के और भी तो कुछ फ़र्ज़ हैं,
उधार ले लिए थे जो चुकाने कुछ कर्ज़ हैं,
पतझर को चीर कर बसंत फिर रंग लाएगा,
प्यार वोही रहेगा बस चेहरा बदल जाएगा,
कविताओं की उमड़ती नदी अगर सूख गयी तो क्या हुआ,
शहनआईओं के संगीत मे गीतों की चहक तो है, फ़ासले बने तो क्या रिश्तों की चहक तो है...

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